किसी भी समय, किसी इक्विटी के मूल्य का निर्धारण आपूर्ति और मांग का परिणाम है. आपूर्ति किसी निश्चित समय पर बिक्री के लिए प्रस्तुत शेयरों की संख्या है. मांग बिल्कुल उसी समय निवेशक द्वारा खरीदने की इच्छा वाले शेयरों की संख्या है. शेयर की कीमत संतुलन हासिल करने और उसे बनाए रखने के लिए बदलती रहती है.
जब भावी खरीदारों की संख्या विक्रेताओं की संख्या से अधिक हो, तो मूल्य बढ़ता है.अत: उच्च विक्रय मूल्य से आकर्षित विक्रेता बाज़ार में प्रवेश करते हैं और खरीदार बाहर जाते हैं, जिससे खरीदारों और विक्रेताओं के बीच संतुलन हासिल होता है. जब विक्रेताओं की संख्या खरीदारों की संख्या से कम होती है, तो मूल्य गिर जाता है. अंतः खरीदार प्रवेश करते हैं और विक्रेता चले जाते हैं, दुबारा संतुलन हासिल होता है.
आई.पी.ओ ये शब्द मर्केट मे अनेक बार सुनने को मिलता है! आई.पी.ओ मे वे शेयर आते है, जो किसी शेयर धारक से न खरीद कर सीधे कम्पनी से खरीदे जाते है, इसे ही प्राइमरी मर्केट कह्ते है!वैसे बाद मे शेयरधारक इनमे क्रय- विक्रय करते है, और फिर वो सैकण्डरी मर्केट कहलाता है!
यदि औसत या कमजोर कम्पनी क आई.पी.ओ ज्यादा ऊची कीमत पर आता है, तो स्वभाविक है कि ज्यादा लोग शेयर नही खरीदेगे और मूल्य नीचे आयेगा, यदि अच्छी कम्प्नी का आई.पी.ओ कम या औसत मूल्य पर आता है! तो निश्चित ही शेयरो कि बिक्री अधिक होगी और कीमत भी बढेगी !
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